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Food inflation

सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर 

सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर 

भारत की राजधानी दिल्ली समेत विभिन्न राज्यों में टमाटर का भाव 200 रुपये से 250 रुपये किलो तक पहुँच गया है। साथ ही, चंडीगढ़ में लोगों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिए 300 रुपये से भी ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं। भारत में महंगाई के चलते आम से लेकर खास लोगों तक की रसोई का बजट बिगड़ गया है। बतादें कि करैला, धनिया, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, भिंडी और लौकी समेत समस्त प्रकार की हरी सब्जियां महंगी हो गई हैं। परंतु, सबसे अधिक टमाटर की कीमत में आग लगी हुई है। महंगाई का कहर इतना है, कि टमाटर का भाव 250 रुपये किलो से भी ऊपर चला गया है। दिल्ली- एनसीआर सहित विभिन्न राज्यों में टमाटर की कीमत 200 रुपये से 250 रुपये किलो पर पहुँच चुकी है। साथ ही, चंडीगढ़ में लोगों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिए 300 रुपये से भी ज्यादा रुपये का खर्चा करना पड़ रहा है। यहां पर टमाटर 350 रुपये किलो तक बिक रहा है।

अब से 70 रूपए किलो बिकेगा टमाटर

हालांकि, महंगाई पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार के समेत राज्य सरकारें भी पूरा प्रयास कर रही हैं। लेकिन कीमतों में गिरावट आने की कोई आशा नजर नहीं दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार की एजेंसी नाफेड ने खुद ही दिल्ली, नोएडा और लखनऊ समेत भारत की बहुत सारे शहरों में 80 रुपये किलो टमाटर बेचना चालू कर दिया है। परंतु, वर्तमान में लोग 80 रुपये किलो से भी कम भाव पर सरकारी स्टॉल से टमाटर खरीद सकेंगे। नाफेड ने घोषणा की है, कि वह 20 जुलाई से 70 रुपये किलो के रेट से टमाटर बेचेगा। जिससे कि महंगाई पर रोकथाम लगाई जा सके। ये भी पढ़े: केंद्र सरकार दिलाएगी महंगाई से निजात देश की राजधानी समेत इन शहरों में 90 रुपए किलो बिकेगा टमाटर

टमाटर के बढ़ते भाव पर लगेगी रोक

जानकारों का कहना है, कि केंद्र सरकार ने यह ऐलान टमाटर के भाव में आ रही कमी के ट्रेंड को देखते हुए किया है। गुरुवार से भारत के विभिन्न शहरों में नाफेड 70 रुपये किलो तक टमाटर बेचेगा। मुख्य बात यह है, कि सस्ती दर पर टमाटर बिक्री के लिए केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश से टमाटर की खरीदारी करेगा। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से उत्तर भारत के राज्यों में टमाटर की बढ़ती कीमतों पर ब्रेक लगेगा।

नाफेड अब 70 रुपये किलो बेचेगा टमाटर

बता दें कि केंद्र सरकार की एजेंसी नाफेड ने पहले दिल्ली-एनसीआर में विभिन्न स्थानों पर मोबाइल वैन के माध्यम से 90 रुपये किलो टमाटर बेचना चालू किया था। इसके पश्चात 16 जुलाई को नाफेड ने 10 रुपये किलो टमाटर सस्ता कर दिया और 80 रुपये किलो बेकना शुरू कर दिया। फिलहाल, नाफेड लखनऊ और पटना में विभिन्न स्थानों पर 80 रुपये किलो टमाटर बेक रहा है। नाफेड कल से 70 रुपये किलो टमाटर बेचेगा।
अत्यधिक गर्मी होने से बाजार में फलों की उपलब्धता में आएगी कमी

अत्यधिक गर्मी होने से बाजार में फलों की उपलब्धता में आएगी कमी

आजकल गर्मी बढ़ने की वजह से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में 10 से 30% फीसद तक की कमी देखने को मिलेगी। जैसे-जैसे गर्मी पास आ रही है। भारत में सब्जियों और फलों के उत्पादन का संकट बढ़ता दिख रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, आगामी दिनों में फल एवं सब्जियों के भाव सातवें आसमान पर हैं। इसका यह कारण है, कि वक्त से पूर्व गर्मी में बढ़ोत्तरी होने से फलों और सब्जियों के उत्पादन में करीब 30% प्रतिशत तक की गिरावट हो सकती है। नतीजतन इसका प्रभाव फलों के राजा आम पर वर्तमान से ही पड़ना शुरू हो गया है। किसानों के अनुसार, इस बार आम की बौर एवं फलों में काफी गिरावट देखने को मिली है। साथ ही, तापमान में अधिक वृद्धि होने की वजह से नींबू, तरबूज, केले, काजू और लीची की फसल भी प्रभावित हुई है।

(IIHR) के डायरेक्टर एसके सिंह ने इस विषय पर क्या कहा है

बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च (IIHR) के डायरेक्टर एसके सिंह के अनुसार, गर्मी में अचानक वृद्धि की वजह से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में 10 से 30% तक की कमी हो सकती है। इसकी वजह समय से पहले गर्मी का होना है। इसकी वजह से आम, लीची, केले, अवाकाडो, कीनू, और संतरे की फसल प्रभावित हुई है। फरवरी माह का औसत तापमान भारत में 29.5 डिग्री सेल्सियस रहा था जो कि एक रिकॉर्ड है।

आपूर्ति में गिरावट आने की संभावना है

मौसम विभाग के जरिए मार्च से मई माह के मध्य भारत के नार्थ वेस्ट क्षेत्रों में गर्म हवा चलने की संभावना जताई गई है। वहीं, गर्मी में वृद्धि होने की वजह से सब्जियां वक्त से पूर्व पक रही हैं। इसी कारण से सब्जियों की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक हो सकती है। लेकिन, कुछ समयोपरांत इसमें गिरावट भी हो सकती है। साथ ही, इसकी आपूर्ति में कमी आने से सब्जियों के भाव में वृद्धि देखने को मिलेगी।

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भारत में अधिक आबादी होने से फलों व सब्जियों की होगी किल्लत

जैसा सा कि हम सब भली भाँति जानते हैं, कि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। इसलिए यहां खाद्यान आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें काफी सजग और जागरूक रहती हैं। इसके साथ ही भारत एक कृषि प्रधान देश भी है। उपरोक्त में सब्जिओं और फलों के विषय में जैसा वर्णन किया गया है। उसका एक कारण यहां की घनी आबादी भी है। यदि अनाज और बागवानी फसलों में कमी आती है, तो इसका प्रत्यक्ष रूप से इसका असर आम जनता पर पड़ता है।
रूस यूक्रेन युद्ध, अनाज का हथियार के तौर पर इस्तेमाल

रूस यूक्रेन युद्ध, अनाज का हथियार के तौर पर इस्तेमाल

आपको बतादें कि रूस ने अपने हाथों गेहूं निर्यात का नियंत्रण ले लिया है। इससे खाद्यान्न युद्ध शुरू होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी कड़ी में दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स ने रूस से गेहूं निर्यात के कारोबार से पीछे हटने की घोषणा की है। इसका मतलब यह है, कि विश्व का सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस की खाद्य निर्यात पर दखल और अधिक होगी। अनुमानुसार, रूस गेहूं निर्यात को रणनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग कर सकता है। जरुरी नहीं कि दुश्मन को मजा चखाने के लिए अपना शारीरिक और आर्थिक बल ही उपयोग किया जाए। ना ही किसी अस्त्र शस्त्र की आवश्यकता जैसे कि आजकल बंदूक, मिसाइल, तोप, पनडुब्बी आदि आधुनिक हथियारों का उपयोग होता है। खाद्यान पदार्थों में अनाज भी एक बड़े हथियार की भूमिका अदा करता है। क्योंकि आज के समय खाद्यान्न जियोपॉलिटिक्स का बड़ा हथियार है। बीते दिनों रूस-यूक्रेन के भीषण युद्ध के बीच मॉस्को फिलहाल गेहूं को हथियार के रूप में उपयोग करने जा रहा है, जिसकी चिंगारी पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। रूस विश्व का सर्वोच्च गेहूं निर्यातक देश है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूर्व से ही वैश्विक खाद्यान आपूर्ति डगमगाई हुई है। रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से विगत वर्ष खाद्यान्न के भावों में वृद्धि बड़ी तीव्रता से हुई थी। फिलहाल, रूस जिस प्रकार से गेहूं निर्यात पर सरकारी नियंत्रण को अधिक तवज्जो दे रहा है, उससे हालात और अधिक गंभीर होंगे। रूस का यह प्रयास है, कि गेहूं निर्यात में केवल सरकारी कंपनियां अथवा उसकी घरेलू कंपनियां ही रहें। जिससे कि वह निर्यात को हथियार के रूप में और अधिक कारगर तरीके से उपयोग कर सके। इसी मध्य दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स निर्यात हेतु रूस में गेहूं खरीद को प्रतिबंधित करने जा रहे हैं। नतीजतन, वैश्विक खाद्यान आपूर्ति पर रूस का नियंत्रण और अधिक हो जाएगा।

गेंहू निर्यात हेतु रूस से दो इंटरनेशनल ट्रेडर्स ने कदम पीछे हटाया

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगिल इंकॉर्पोरेटेड और विटेरा ने रूस से गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। इन दोनों की विगत सीजन में रूस के कुल खाद्यान्न निर्यात में 14 फीसद की भागीदारी थी। इनके जाने से विश्व के सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस का ग्लोबल फूड सप्लाई पर नियंत्रण और पकड़ ज्यादा होगी। इनके अतिरिक्त आर्कर-डेनिएल्स मिडलैंड कंपनी भी व रूस भी अपने व्यवसाय को संकीर्ण करने के विषय में विचार-विमर्श कर रही है। लुइस ड्रेयफस भी रूस में अपनी गतिविधियों को कम करने की सोच रही है। जैसा कि हम जानते हैं, गेहूं का नया सीजन चालू हो गया है। रूस गेहूं के नए उत्पादन का निर्यात चालू कर देगा। फिलहाल, इंटरनैशनल ट्रेडर्स के पीछे हटने से रूसी गेहूं निर्यात पर सरकारी और घरेलू कंपनियों का ही वर्चश्व रहेगा। रूस द्वारा और बेहतरीन तरीके से इसका उपयोग जियोपॉलिटिक्स हेतु कर पायेगा। वह मूल्यों को भी प्रभावित करने की हालात में रहेगा। मध्य पूर्व और अफ्रीकी देश रूसी गेहूं की अच्छी खासी मात्रा में खरीदारी करते हैं।

रूस करेगा गेंहू निर्यात को एक औजार के रूप में इस्तेमाल

रूस द्वारा वर्तमान में गेहूं निर्यात करने हेतु सरकार से सरकार व्यापार पर ध्यान दे रहा है। बतादें, कि सरकारी कंपनी OZK पहले ही तुर्की सहित गेहूं बेचने के संदर्भ में बहुत सारे समझौते कर चुकी है। उसने विगत वर्ष यह कहा था, कि वह इंटरनैशनल ट्रेडर्स के हस्तक्षेप से निजात चाहती है और प्रत्यक्ष रूप से देशों को निर्यात करने की दिशा में कार्य कर रही है। रूस गेहूं का शस्त्र स्वरुप उपयोग करते हुए स्वयं की इच्छानुसार चयनित देशों को ही गेंहू निर्यात करेगा। इससे फूड सप्लाई चेन तो प्रभावित होगी ही, विगत वर्ष की भाँति अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के मूल्यों में बेइंतिहान वृद्धि भी हो सकती है। ये भी पढ़े: बंदरगाहों पर अटका विदेश जाने वाला 17 लाख टन गेहूं, बारिश में नुकसान की आशंका

रूस ने खाद्य युद्ध को यदि हथियार बनाया तो क्या होगा

रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव से विगत वर्ष विश्वभर में गेहूं एवं आटे के भावों में तीव्रता से बढ़ोत्तरी हुई थी। बहुत सारे देश खाद्य संकट की सीमा पर पहुँच चुके हैं। तो बहुत से स्थानों पर खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो चुके हैं। विगत वर्ष भारत में भी गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा हुआ था। जिसके उपरांत सरकार द्वारा गेहूं निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। हालाँकि, भारत अपने आप में एक बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। परंतु, जो देश खाद्यान्न की आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक आयात हेतु आश्रित हैं। उनको काफी खाद्यान संकट से जूझना पड़ेगा। विश्व में एक बार पुनः गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा होने की संभावना भी बढ़ गई है।

पुरे विश्व को प्रभावित कर सकता है फूड वॉर

अगर हम सकारात्मक तौर पर इस बात का विश्लेषण करें तो खाद्यान्न को एक हथियार के रूप में उपयोग करना कही तक उचित तो कतई नहीं है। इससे काफी लोग भुखमरी तक के शिकार होने की संभावना होती है। वर्ष 2007 में सर्वप्रथम फूड वॉर की भयावय स्थिति देखने को मिली थी। उस वक्त सूखा, प्राकृतिक आपदा की भांति अन्य कारणों से भी पूरे विश्व में खाद्यान्न की पैदावार कम हुई थी। उस समय रूस, अर्जेंटिना जैसे प्रमुख खाद्यान्न निर्यातक देशों ने घरेलू मांग की आपूर्ति करने हेतु 2008 में कई महीनों तक खाद्यान्न के निर्यात को एक प्रकार से बिल्कुल प्रतिबंधित कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप, विश्व के विभिन्न स्थानों पर राजनीतिक अस्थिरता एवं आर्थिक संकट उत्पन्न हो गए थे। संयोगवश उस समय वैश्विक मंदी ने भी दस्तक दे दी थी। फूड वॉर को भी इसके कारणों में शम्मिलित किया जा सकता है।
टमाटर, अदरक के साथ साथ इन सब्जियों के भी बढ़ गए दोगुने दाम

टमाटर, अदरक के साथ साथ इन सब्जियों के भी बढ़ गए दोगुने दाम

भारत की राजधानी दिल्ली में टमाटर अब 200 से भी ज्यादा हो गया है। इसी प्रकार अदरक, भिंडी एवं शिमला मिर्च की कीमतें भी बढ़ चुकी हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि मानसून के दस्तक देते ही महंगाई रॉकेट की गति से बढ़ गई है। बतादें कि टमाटर के पश्चात वर्तमान में अदरक, प्याज और लहसुन समेत विभिन्न सब्जियां काफी महंगी हो गई हैं। इसकी वजह से आम जन मानस की थाली से विटामिन्स से भरपूर डिशेज विलुप्त हो गई हैं। महंगाई का कहर यहां तक है, कि 30 से 40 रुपए में उपलब्ध होने वाली हरी-सब्जियां ही खरीदना बंद कर दिया है। अब उसके स्थान पर वह चना सोयाबीन और आलू की सब्जियॉं खाकर अपने पेट का भरण पोषण करते हैं।

टमाटर की कीमतें 200 से भी ऊपर हुई

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में टमाटर 200 रुपये किलो से भी अधिक महंगा हो गया है। अदरक की तो चर्चा करना ही छोड़ दीजिए। यह 320 रुपये किलो हो गया है। जनता भाव सुनकर ही सब्जियों की दुकान से दूरियां बना ले रहे हैं। विशेष बात यह है, कि दिल्ली में इतनी महंगी सब्जियां तब है, जबकि यहां पर उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड से खाद्य पदार्थों की आपूर्ति होती है। ये भी पढ़े: इन राज्यों में 200 रुपए किलो के टमाटर को राज्य सरकार की मदद से 60 रुपए किलो में बेचा जा रहा है

धनिया हुआ 100 के भाव

ओखला सब्जी मंडी में टमाटर के अतिरिक्त बाकी सब्जियों की कीमतों में दोगुना से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अगर हम बात दिल्ली के रिटेल मार्केट की करें, तो यहां पर सब्जियों की कीमत सांतवें आसमान पर पहुंच गई है। टमाटर 220 रुपए तो शिमला मिर्च 100 से 110 रुपए किलो बिक रही है। यही स्थिति धनिया के साथ भी है। 40 से 50 रुपये किलो खुदरा मार्केट में बिकने वाले धनिया की कीमत 100 रुपए तक पहुँच चुकी है।

इन सब्जियों की बढ़ी कीमत

इसी प्रकार खीरे की कीमत में भी आग लग चुकी है। जो खीरा एक महीने पहले तक 20 रुपये किलो था, अब इसकी कीमत में दोगुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। लोगों को एक किलो खीरा खरीदने पर 40 से 50 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इसी प्रकार भिंडी भी 50 रुपये किलो हो गई है। विशेष बात यह है, कि फूलगोभी तीन गुना महंगा हो गया है। जानकारी के लिए बतादें, कि 30 से 35 दिन पहले तक फूलगोभी 40 रुपये किलो था। वर्तमान में फूलगोभी कीमत 120 रुपये किलो हो गई है। इस कड़ी में 80 रुपये किलो नींबू 100 रुपये किलो हरी मिर्च और 60 रुपये किलो करेला बिक रहा है।
सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ साथ अब दूध भी बिगड़ेगा रसोई का बजट

सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ साथ अब दूध भी बिगड़ेगा रसोई का बजट

तकरीबन प्रति वर्ष दूध की कीमतों में इजाफा होता है। विशेष कर विशेष 12 साल में दूध के दाम 57 प्रतिशत बढ़े हैं। परंतु, कीमतों में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी साल 2022 के दौरान हुई है।

सब्जियों के साथ साथ दूध के बढ़ते दाम

महंगाई का भार आम आदमी के ऊपर से कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। बतादें, कि हरी सब्जी, दाल, चावल एवं मसालों के उपरांत फिलहाल दूध भी रसोई का बजट खराब करने वाला है। एक अगस्त से कर्नाटक में लोगों के लिए दूध खरीदना काफी महंगा हो जाएगा। कर्नाटक सरकार ने नंदिनी दूध की कीमत में 3 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से इजाफा करने का निर्णय लिया है। मुख्य बात यह है, कि बढ़ी हुईं कीमतें 1 अगस्त से लागू की जाऐंगी। हालांकि, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) ने भी
दूध के दाम बढ़ाने को लेकर सरकार से मांग की थी। उसने कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बढ़ोतरी करने की मांग की थी।

कर्नाटक में अन्य राज्यों के मुकाबले दूध का रेट सस्ता है

दूध में बढ़ोत्तरी के बाद भी कर्नाटक में अन्य राज्यों की तुलना में दूध का भाव सस्ता ही रहेगा। बतादें, कि कर्नाटक में दूध की शुरूआती कीमत 39 रुपए प्रति लीटर है। वहीं, आंध्र प्रदेश में दूध 56 रुपये लीटर बिकता है। इसी तरह से तमिलनाडु में 44 रुपये तो केरल में की स्टार्टिंग कीमत 50 रुपये लीटर है। लेकिन, दिल्ली, गुजरात एवं महाराष्ट्र में टोंड दूध 54 रुपये प्रति लीटर पर बिकता है।

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विगत वर्ष प्रतिदिन 94 लाख लीटर दूध खरीदा जाता था

खबरों के अनुसार नंदिनी दूध की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव दूसरे ब्रांडों पर भी पड़ सकता है। देखा-देखी दूसरे राज्य में दूसरी डेयरी कंपनियां भी दूध की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं। इससे इस महंगाई में जनता का बजट और डगमगा जाएगा। हालांकि, केएमएफ अधिकारियों ने बताया है कि दूध की खरीद में पिछले साल की तुलना में भारी गिरावट दर्ज की गई है। विगत वर्ष प्रति दिन 94 लाख लीटर दूध खरीदा जाता था, जो अब घटकर 86 लाख लीटर पर पहुंच चुका है। उनका कहना है, कि किसान अत्यधिक कीमत मिलने के चलते निजी कंपनियों के हाथों दूध बेच रहे हैं। इससे दूध की किल्लत हो गई है। यही वजह है, कि दूध की कीमतों में वृद्धि करने का फैसला लिया गया।

कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर रही हैं

केएमएफ के अधिकारियों की चाहे जो भी दलीले हों, परंतु उत्तर भारत में भी आने वाले दिनों में दूध की कीमतों में 3 रुपये लीटर के अनुरूप इजाफा हो सकता है। क्योंकि, उत्तर भारत में चारे के साथ-साथ पशु आहार भी 25% तक महंगे हो गए हैं। इसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव दूध के उत्पादन पर पड़ रहा है। अब किसानों को दुधारू पशुओं के चारे पर अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ रही है। अब ऐसी स्थिति में वे लागत निकाल कर डेयरी कंपनियों को महंगे भाव पर दूध बेच रहे हैं। यही वजह है, कि महंगी खरीद होने की वजह से डेयरी कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर सकती हैं।

किचन का बजट काफी प्रभावित होगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग प्रतिवर्ष दूध की कीमतों में बढ़ोतरी होती है। विशेष कर पिछले 12 साल में दूध के भाव 57 प्रतिशत बढ़े हैं। लेकिन, सबसे ज्यादा पिछले साल कीमतों में वृद्धि हुई है। साल 2022 में दूध की कीमतों में उछाल आने से 10 रुपये तक महंगा हो गया। इसके अलावा इस साल भी फरवरी माह में दूध की कीमतों में 3 रुपये का इजाफा हुआ। ऐसी स्थिति में लोगों को काफी डर सता रहा है, कि नंदिनी को देखकर कहीं बाकी कंपनियां भी दूध का रेट न बढ़ा दे। अगर ऐसा होता है, तो इस महंगाई में किचन का बजट बहुत ही ज्यादा डगमगा जाएगा।

दूध इस वजह से भी महंगा हो सकता है

आजकल पंजाब व हरियाणा समेत बहुत सारे राज्यों में बाढ़ की वजह से धान की फसल चौपट हो गई है, जिसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव आने वाले महीनों में चारे पर पड़ेगा। इसकी वजह यह है, कि धान की पराली का सबसे ज्यादा उपयोग चारे में तौर पर किया जाता है। साथ ही, दक्षिण भारत में औसत से काफी कम बारिश हुई है, जिससे धान के क्षेत्रफल में कमी आने की संभावना है। इसका प्रभाव भी मवेशियों के चारे पर पड़ेगा। ऐसी स्थिति में चारा हद से ज्यादा महंगा होने पर दूध की कीमतों में भी इजाफा देखने को मिलेगी है।
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जैसा कि हम जानते हैं, कि चरम सीमा पर महंगाई होने की वजह से आम जनता की रसोई का बजट खराब हो गया है। टमाटर और हरी सब्जियों के उपरांत फिलहाल मसालों ने भी लोगों की परेशानियां बढ़ाना शुरू कर दिया है। इनकी कीमतों में कई गुना इजाफा दर्ज किया गया है। बारिश के चलते देश में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। इससे आम जनता के साथ- साथ खास लोगों के किचन का भी बजट डगमगा चुका है। हरी सब्जियों के पश्चात यदि किसी खाद्य पदार्थ की कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़वार हुई है, तो वो हैं मसालें। पिछले एक महीने में मसालों के भाव में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है। विशेष बात यह है, कि विगत 15 दिन में ही कुछ मसालों की कीमत में दोगुनी वृद्धि हुई है। इससे प्रत्येक वर्ग की जेब पर बोझ बढ़ गया है।

दूध, मसाले, हरी सब्जियों सहित कई सारे खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ी हैं

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश की वजह से केवल हरी सब्जियां ही नहीं बल्कि दूध, मसाले और अन्य खाद्य उत्पाद की कीमतें भी बढ़ गई हैं। महंगाई का आंकलन इस बात से किया जा सकता है, कि जो जीरा थोक भाव में विगत वर्ष 300 रुपये किलो था, अब उसकी कीमत 700 रुपये से भी ज्यादा हो गई है। साथ ही, खुदरा बाजार में यह 1000 रुपये लेकर 1200 रुपये किलो बिक रहा है। इससे ग्राहक के साथ-साथ व्यापारी भी चिंता में आ गए हैं।

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लाल मिर्च की कीमतों में दोगुना उछाल

इसी संदर्भ में व्यापारियों का कहना है, कि जीरा इतना ज्यादा महंगा हो जाएगा, उन्हें ऐसी कभी आशंका ही नहीं थी। साथ ही, कृषि विशेषज्ञ की माने तो इस वर्ष फरवरी और मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश ने जीरे की फसल को काफी ज्यादा प्रभावित किया है। यही वजह है, कि 2 महीने की समयावधि में जीरा बहुत ज्यादा महंगा हो गया। परंतु, मानसून के आगमन के पश्चात अचानक दूसरे मसाले भी महंगे हो गए। विशेष कर हल्दी एवं लाल मिर्च की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा बढ़ गई है।

मसालों की कीमत में एक वर्ष दौरान कितना उछाल आया (मसालों की कीमत किलो में है)

मसाले बीते वर्ष का रेट होलसेल रेट रिटेल प्राइस
जीरा ₹300 ₹700 ₹1000-1200
हल्दी ₹80-90 ₹160 ₹300
लाल मिर्च ₹110-120 ₹260 ₹400
लौंग ₹600 ₹1100 ₹1500-1800
दालचीन ₹500  ₹700 ₹1100-1400
सौंठ ₹130 ₹500 ₹700-800
जानें दिल्ली की उन मंडियों के बारे में जहां सबसे ज्यादा उचित रेट पर सब्जी और फल मिलते हैं

जानें दिल्ली की उन मंडियों के बारे में जहां सबसे ज्यादा उचित रेट पर सब्जी और फल मिलते हैं

दिल्ली में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। यहां पर आज भी टमाटर 140 रुपये किलो बिक रहा है। साथ ही, बाकी हरी सब्जियां भी बेहद महंगी हैं। भारत में महंगाई से त्राहिमाम मचा हुआ है। लौकी, परवल, शिमला मिर्च, टमाटर, प्याज और करेला समेत समस्त तरह की सब्जियों की कीमत में आग लगी हुई है। 30 से 40 रुपये किलो मिलने वाला टमाटर 150 से 180 रुपये किलो बिक रहा है। इसी प्रकार प्याज के भाव में भी 20 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है। 15 से 20 रुपये किलो वाला प्याज फिलहाल 25 से 30 रुपये में बिक रहा है। इसी प्रकार शिमला मिर्च भी काफी गुना ज्यादा महंगी हो गई है। जून से पूर्व जो शिमला मिर्च 20 रुपये किलो बिक रही थी, अब उसकी कीमत 80 से 120 रुपये किलो हो गई है।

दिल्ली में कई सब्जी मंडी ऐसी हैं जहां उचित रेट पर सब्जी व फल मिलते है

परंतु, आप राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रहते हैं, तो आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। दिल्ली में ऐसी कई मंडी हैं, जहां पर आप इस महंगाई में भी उचित भाव पर सब्जियां खरीद सकते हैं। परंतु, मंडियों में प्रथम स्थान पर आजादपुर सब्जी मंडी का नाम आता है। यह एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी में से है। इस सब्जी मंडी की स्थापना 1977 में की गई थी। इस मंडी में समस्त प्रकार की सब्जी और फल कम कीमत पर मिल जाते हैं। यहां पर आप थोक में फल और सब्जियों की खरीदारी कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि रिटेल मार्केट से न्यूनतम 20 प्रतिशत कम भाव पर आजादपुर मंडी में आपको फल और सब्जियां मिल जाऐंगी।

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ओखला मंडी की स्थापना सन 1987 में की गई थी

इसके उपरांत ओखला सब्जी मंडी का स्थान आता है। इसकी स्थापना 1987 में की गई थी। इस सब्जी मंडी में 300 से अधिक फल और सब्जियों की दुकानें हैं। इसी मंडी की खासियत है, कि यहां पर दुकानदारों के मध्य प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा हैं। ऐसे में दुकानदार ग्राहकों को बहुत सस्ती दर पर फल और सब्जी बेचते हैं। यह सब्जी मंडी 24 घंटे खुली रहती है।

शहादरा सब्जी मंडी की कीमत बहुत कम रहती है

शाहदरा सब्जी मंडी भी अपने सही भाव के लिए मशहूर है। यह पूर्वी दिल्ली जनपद में मौजूद है। यहां पर आप कश्मीरी गेट से रेड लाइन मेट्रो से पहुंच सकते हैं। अगर आपके घर में पार्टी अथवा कोई कार्यक्रम है और आपको होलसेल में फ्रूट- सब्जियां खरीदने हैं, तो आप यहां से खरीदारी कर सकते हैं। इस मंडी में सब्जियां डायरेक्ट किसान के खेतों से आती हैं। ऐसे में सब्जी और फलों की कीमत काफी कम रहती है।

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आर्यपुरा दिल्ली की एक प्रसिद्ध सब्जी मंडी है

इसी प्रकार आर्यपुरा मंडी में भी आपको हर तरह की सब्जी और फल मिल जाएंगे। यह दिल्ली की एक प्रमुख सब्जी मंडी है। इस मंडी में फल और सब्जियों की बार्गेनिंग काफी ज्यादा होती है। ऐसी स्थिति में आप मोल भाव कर सब्जियों की कीमत भी तोड़ सकते हैं। विशेष बात यह है, यहां पर सभी तरह की सब्जी और फलों के बीज भी बिकते हैं। अगर आप घर की छत पर सब्जियों की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो आप यहां से बीज भी खरीद सकते हैं।
आने वाले समय में तिलहन, दलहन व खाद्य तेलों की कीमतों में इजाफा हो सकता है

आने वाले समय में तिलहन, दलहन व खाद्य तेलों की कीमतों में इजाफा हो सकता है

विशेषज्ञों का कहना है, कि खरीफ फसलों के लिए अगस्त एवं सितंबर माह की बारिश काफी महत्व रखती है। अगर इन दो महीनों में अच्छी-खासी वर्षा होती है, तो दलहन एवं तिलहन का उत्पादन बढ़ जाता है। परंतु, इस वर्ष अगस्त में औसत से कम वर्षा हुई है, जिसका प्रभाव धान, दलहन, तिलहन और गन्ने की पैदावार पर भी देखने को मिल सकता है। वर्तमान में महंगाई से सहूलियत मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। आगामी दिनों में तिलहन एवं दलहन के भाव में और इजाफा हो सकता है। इससे आम जनता के ऊपर महंगाई का भार और अधिक बढ़ जाएगा। ऐसा बताया जा रहा है, कि अगस्त में औसत से भी कम बारिश हुई है और सितंबर तक ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी. यानि कि अगले महीने भी मानसून कमजोर ही रहेगा. ऐसे में दलहन और तिलहन की पैदावार पर असर पड़ेगा, जिससे उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है. ऐसे में आने वाले दिनों में दलहन और तिलहन की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है। किसान इस बार दलहनी फसलों का उत्पादन करके अच्छा मुनाफा कमाने के साथ साथ बेहतर ढंग से खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं। बतादें कि बारिश का प्रभाव पड़ने से दलहन और तिलहन फसलों की कीमतों में वृद्धि देखी गई है।

इस बार अगस्त में विगत 8 वर्षों से कम बारिश दर्ज की गई है

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, इस वर्ष अगस्त माह में 8 वर्षों के अंतर्गत काफी कम बारिश दर्ज की गई है। दरअसल, अलनीनो फैक्टर के कारण आगामी महीनों में भी औसत से कम बारिश होने की संभावना है। बतादें, कि भारत भर में दलहन और तिलहन की बुआई हो चुकी है। अब कुछ दिनों के उपरांत फसलों में फूल आने शुरू हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में फसलों की सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है। परंतु, पानी के अभाव की वजह से दलहन और तिलहन के उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा, जिससे पैदावार में कमी भी देखने को मिल सकती है। यह भी पढ़ें: दलहन की फसलों की लेट वैरायटी की है जरूरत

भारत के केवल इन हिस्सों में अच्छी-खासी वर्षा दर्ज की गई है

मौसम विभाग ने बताया है, कि भारत के केवल उत्तर पश्चिम भाग में ही बेहतरीन वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इन हिस्सों में विगत वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक बरसात दर्ज की गई है। साथ ही, मध्य भारत में औसत से 7 प्रतिशत कम, पूर्व उत्तर भारत में 15 प्रतिशत कम और दक्षिण भारत में औसत से 17 प्रतिशत कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। ऐसी स्थिति में मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया है, कि अगस्त माह के दौरान संपूर्ण भारत में विगत वर्ष की तुलना में 35 प्रतिशत कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। अधिकारियों की मानें तो अगर सितंबर में सामान्य से अधिक भी बारिश होती है, तो भी अगस्त महीने की कमी की भरपाई नहीं की जा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 332 मिलियन टन निर्धारित किया गया है। हालांकि, फसल सीजन 2022-23 में भारत में खाद्यान्न पैदावार में 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। भारत का खाद्यान्न भंडार 330.5 मिलियन टन पर पहुंच गया था। वहीं, इस वर्ष खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 332 मिलियन टन निर्धारित किया गया है।
देशवासियों को त्योहारी सीजन में नहीं लगेगा महंगाई का झटका - खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा

देशवासियों को त्योहारी सीजन में नहीं लगेगा महंगाई का झटका - खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा का कहना है कि महंगाई पर रोकथाम करने के लिए केंद्र सरकार भरपूर प्रयास कर रही है। खाद्य पदार्थों की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार की टीमें जगह-जगह पर छापेमारी कर रही हैं। दरअसल, त्योहारी सीजन की शुरुआत होने से पूर्व महंगाई की रोकथाम करने के लिए केंद्र सरकार ने सारी तैयारी कर ली है। अब ऐसे में आम जनता को महंगाई को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा एवं दिवाली पर समुचित कीमत पर खाद्य पदार्थ मिलेंगे। केंद्र सरकार ने बताया है, कि उसके पास चीनी का पर्याप्त भंडार है। अब जनता को त्योहारी सीजन में चीनी की कमी नहीं होगी। बाजार में चीनी की आपूर्ति मांग के हिसाब से होती रहेगी, जिससे कि कीमतें नियंत्रित रहें। उन्होंने कहा कि सरकारी भंडार में अभी चीनी का 85 लाख टन स्टॉक मौजूद है। ऐसे में आम जनता को महंगाई को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है।

गन्ने की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं होगा

संजीव चोपड़ा का कहना है, कि गेहूं के भाव आर्टिफिशियल तरीके से अधिक हो रहे हैं। परंतु, शीघ्र ही इसके ऊपर भी नियंत्रण पा लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाह है कि इस वर्ष औसत से कम बरसात दर्ज होने से गन्ने की पैदावार में गिरावट आ सकती है। परंतु, यह बिल्कुल सच नहीं है। उनके कहने के अनुसार तो गन्ने के उत्पादन में किसी तरह की गिरावट नहीं आएगी।

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चावल की कीमतों में हुई 10% प्रतिशत बढ़ोत्तरी

उन्होंने कहा कि अफवाह की वजह से ही चावल के भाव 10% प्रतिशत तक बढ़े हैं। परंतु,, फसल सीजन 2023-24 में धान की बेहतरीन पैदावार होगी। अब ऐसी स्थिति में बाजार के अंदर नवीन चावल आने से कीमतों में गिरावट आएगी। उन्होंने कहा है, कि गेहूं पर भंडारण सीमा कम की गई है। किसानों को चावल के भाव में बढ़ोत्तरी होने पर बेहद खुशी का अनुभव भी हुआ। क्योंकि, धान एक खरीफ की फसल है। इस खरीफ फसल की कटाई के लिए उपयुक्त समय आ गया है। खरीफ की फसल चावल की कटाई का समय चल रहा है। अब ऐसे में यदि चावल की कीमत बढ़ेगी तो निश्चित रूप से किसानों को काफी लाभ मिलेगा।

भारत में धान का कितना उत्पादन होता है

भारत धान उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर आने वाला देश है। भारत द्वारा विदेशों तक चावल का निर्यात किया जाता है। विश्वभर में भारत चावल की खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करता है। भारत के ऊपर बहुत सारे देश निर्भर होते हैं। यदि भारत में चावल की पैदावार कम होती है तो उससे पूरे विश्वभर की खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। भारत को चावल की विभिन्न किस्मों के उत्पादन के लिए काफी जाना जाता है। भारत से नेपाल चावल के लिए काफी हद तक आश्रित रहता है।
केंद्र सरकार ने त्यौहार आने से पहले महंगाई पर लगाम लगाने की तैयारी पूरी की

केंद्र सरकार ने त्यौहार आने से पहले महंगाई पर लगाम लगाने की तैयारी पूरी की

केंद्र सरकार ने दुर्गा पूजा एवं दीपावली जैसे त्यौहार आने से पूर्व महंगाई पर लगाम लगाने का सारा प्रबंध कर लिया था। सरकार का ध्यान आम जनता के साथ साथ किसान भाइयों के ऊपर पर ही है। इसी कारण से केंद्र ने रोज किस्म की प्याज की एक्सपोर्ट ड्यूटी हटा दी है। केंद्र सरकार ने प्याज उत्पादक किसानों के फायदे में बड़ा निर्णय लिया है। उसने प्याज पर से निर्यात ड्यूटी हटा दी है। इससे लाखों किसानों ने सहूलियत की सांस ली है। ऐसा कहा जा रहा है, कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से किसानों को काफी लाभ मिलेगा। उन्हें अब प्याज का अच्छा भाव मिल सकेगा। वहीं, वित्त मंत्रालय ने प्याज पर से एक्सपोर्ट ड्यूटी हटाए जाने को लेकर एक अधिसूचना भी जारी कर दी है। विशेष बात यह है, कि केंद्र सरकार ने सिर्फ बेंगलुरु रोज किस्म के प्याज पर से एक्सपोर्ट ड्यूटी हटाई है। सरकार ने जारी नोटिफिकेशन में कहा है, कि कुछ शर्तों के साथ एक्सपोर्ट की मंजूरी दी गई है। सरकार का मानना है, कि उसके इस निर्णय से प्याज उत्पादक किसानों को सीधा लाभ मिलेगा।

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प्याज किस भाव पर बिक रही है

दरअसल, केंद्र सरकार ने प्याज की बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने के लिए बीते अगस्त माह में प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत ड्यूटी लगाई थी। तब सरकार ने कहा था कि महंगाई को काबू करने के लिए उसने यह निर्णय लिया है। 31 दिसंबर 2023 तक प्याज पर 40 प्रतिशत एक्सपोर्ट ड्यूटी जारी रहेगी। सरकार को आशा थी, कि ऐसा करने से देश से प्याज का निर्यात कम हो जाएगा। इससे प्याज का भंडारण बढ़ जाएगा। ऐसे में प्याज की कीमतों में गिरावट चालू हो जाएगी। हालांकि, सरकार के इस निर्णय से प्याज की कीमतों में कुछ गिरावट आई है। 40 रुपये किलो मिलने वाला प्याज वर्तमान में 30 से 35 रुपये किलो बिक रहा है।

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प्याज की सप्लाई इन देशों में होती है

बतादें, कि बेंगलुरु रोज किस्म की विदेशों में काफी ज्यादा मांग है। इसका सबसे ज्यादा निर्यात थाईलैंड, ताइवान, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में होता है। साथ ही, कर्नाटक के बागबानी आयुक्त से निर्यात किये जाने वाले बेंगलुरु रोज प्याज और उसकी गुणवत्ता को लेकर निर्यातक को प्रमाणपत्र दिखाना पड़ेगा। क्योंकि, सरकार ने प्रमाणपत्र दिखाना अनिवार्य कर दिया है।